बस एक बार मुझे उससे मिलवा दे यार… क्या जबरदस्त एंकर है भाई… बिल्कुल हिरोइन माफ़िक… बोलती है तो लगती है जैसे फूल झड़ रहे हों… यार मेरा कैसे भी हो अपने चैनल में जुगाड़ करवा दे… तू बहुत लक्की है भाई… कसम से… यार कुछ तो कर… कम से कम उसे देखने का मौका तो मिलता रहेगा… अबे यार कुछ नहीं तू भी फालतू में… अबे तू इनकी सच्चाई नहीं जानता… बाहर से कुछ अंदर से कुछ… नहीं यार हर कोई एक जैसा नहीं होता…
दोनों अलग-अलग चैनल में ड्राइवर थे… अक्सर एक दूसरे से मिलते तो एक दूसरे के बारे में बातें किया करते… पहले वाले को दूसरे वाले के चैनल में काम करने वाली एक एंकर बहुत पसंद थी… जब भी वह कोई बुलेटिन करती वह उसे देखना न भूलता… यूं तो उसके चैनल में भी कई एंकर थीं लेकिन उसे लगता कि उसकी बात ही कुछ और है… और एक दिन अचानक उसकी किस्मत का दरवाजा खुल गया… जब उस चैनल में उसके दोस्त ने उसे नौकरी पर रखवा दिया… रात काटे नहीं कट रही थी उसकी… रात भर सोचता रहा कि सबसे पहले जाते ही उसका का दीदार करुंगा…
अरे शूट पर निकलो जल्दी… ओबी ले जाओ फटाफट… पास के इलाके में जो झुग्गी बस्ती है वहां जबरदस्त आग लग गई है… इनपुटहेड ने कहा… जी सर… अरे रुको ज़रा… मैं कुछ सामान भूल आईं अंदर… जी मैडम… अरे ड्राइवर कौन है… वो है… कौन वो… जी नया आया है… ओके…चलो… कब तक पहुचेंगे… मैडम यही कोई दो घंटे में… आगे की सीट पर बैठी वो बोली… ओके… पीछे की सीट पर ओबी इंजीनियर और कैमरामैन बैठे थे… एसी में भी पसीना आ रहा था उसे…
नमस्कार… आप देख रहे हैं… और मैं हूं… इस इलाके में लगी जबरदस्त आग ने एक बार फिर से प्रशासन की पोल खोल दी है… लगातार लाइव दे रही थी वो… दूर से ओबी में बैठा वह उसे एकटक निहार रहा था… ये जली लाशें बतला रही हैं कि कितना दर्दनाक मंज़र रहा होगा यहां… चेहरे पर ग़म लिए लगातार एंकरिंग कर रही थी वो… अंदर से भी कितनी अच्छी है ये… कितना ग़म महसूस कर रही है… अंदर ही अंदर सोच रहा था वो… तभी अचानक… चलो यार हो गया… ये सब फालतू का है… आग लग गई… ये हो गया वो हो गया… ये सब गरीबो के धंधें हैं… हमें क्या… इनको खुद ही अपनी ज़िंदगी जीना नहीं आता… कीड़े-मकोड़ों की तरह रहते हैं… कितनी बदबू है यहां अगर कुछ देर और रुकी तो बेहोश हो जाउंगी…
उसे लगा जैसे किसी ने उसके सीने में ख़ंजर उतार दिया हो… परदे पर मासूमियत दिखाने वाली इतनी पत्थरदिल होगी उसे मालूम नहीं था… नफ़रत हो रही थी उसे उसके पास बैठने से… इतनी तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा था कि वो डर गई… अरे ये क्या… पागल हो क्या तुम… कैसे गाड़ी चला रहे हो… लग गया न डर मैडम… क्या मतलब… मतलब ये कि हम ग़रीबों को मरने से भी डर नहीं लगता आखिर हमारे पास जीने के लिए होता ही क्या है… क्या बकवास कर रहे हो तुम… बकवास… मैं बकवास कर रहा हूं… बकवास तो आप जैसे लोग करते हो दिनभर… बेवकूफ़ बनाते हो लोगों को… तुम्हारा कोई ईमान-धर्म नहीं…चकाचौंध की ज़िदगी में तुम इंसानियत तक को भूल जाते हो… तुम ऑफिस चलो अगर तुम्हें नौकरी से न निकलवा दिया तो मेरा नाम… अरे छोड़ो मैडम आप क्या निकलवाओगी हम खुद ही छोड़ देंगे ये नौकरी… ऐसी जगह काम नहीं करना जहां… तुम जैसे लोग रहते हों…
अरे क्या हुआ… वो तो तेरी फेवरेट थी… तू तो उसे देखकर आहें भरता था… अब क्या हुआ… यार ये मीडिया वाले भी… मुखौटा होते हैं यार… कितनी ग़लतफ़हमी में जी रहा था मैं… यार मुझे उससे नफ़रत हो गई है… कितनी बेदर्दी से एक्टिंग कर रही थी वो… उसने उन लोगों का मज़ाक उड़ाया जो ग़रीब इस दुनिया से जा चुके थे… यार कोई मरता है तो कैसे खेलते हैं ये लोग ख़बर से… समाज की बात करते हैं और समाज से कोई लेना-देना नहीं… कैमरा ऑफ़ होते ही अपनी औक़ात दिखा देते हैं… तू सही कह रहा था उस दिन मेरे दोस्त… अंदर से कुछ बाहर कुछ… चलता हूं यार… ऑटो चलाउंगा अब…
लेखक इंतिखाब आलम अंसारी नोएडा में पत्रकार हैं.
rajni
July 5, 2011 at 10:55 am
इंतिखाब का क्या आलम है……..
anurag.
July 17, 2011 at 11:07 am
intikhab ji aap kya chahte hai, patrakaar bhee har ghatna ke baad peediton ke saath rona shuru kar de…………..patrakaar ne apne dhandhe ke saath kitna nyay kiya yah dekhiye…………….vyaktigat aachran me raja harishchandra hone ka daava to aap bhee nahi kar sakte…………….usne apne profession me kahi kami rakhi to bataye…………………….wah kisi cheez par vyaktigat roop se kya sochti hai, isse aapko kya lena dena………………..aise mukhaute hee aaj loktantra ke behtar stambh bane huye hai………………….patrakar ko aise hee kaam karna chayiye………….reporter ne apne kaam ke saath nyay kiya……………iske baad kahani khatm……………aap badhakar kya saabit karna chahte hai…………………